कॉर्पोरेट जगत में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने वेदांता लिमिटेड के पक्ष में एक विस्तृत कानूनी राय प्रस्तुत की है। यह राय न केवल अमेरिकी शॉर्ट-सेलर वाइसरॉय रिसर्च ग्रुप की रिपोर्ट की कड़ी निंदा करती है, बल्कि भारतीय कॉर्पोरेट जगत की अखंडता और विश्वसनीयता के बारे में भी महत्वपूर्ण सवाल उठाती है।

न्यायिक दृष्टिकोण से वाइसरॉय रिपोर्ट का विश्लेषण

डॉ. चंद्रचूड़ की 20 पृष्ठीय कानूनी राय एक गहन न्यायिक विश्लेषण प्रस्तुत करती है। उनके अनुसार, वाइसरॉय की रिपोर्ट निंदनीय है और इसमें विश्वसनीयता की कमी है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश का यह स्पष्ट कहना कि “यह रिपोर्ट भारतीय न्यायशास्त्र के तहत कानूनी जांच में खरी नहीं उतरेगी” एक गंभीर न्यायिक टिप्पणी है।

राय में तीन मुख्य कारण बताए गए हैं जो वाइसरॉय रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं। पहला, शॉर्ट सेलिंग के माध्यम से लाभ कमाने का वाइसरॉय का स्थापित ट्रैक रिकॉर्ड है। दूसरा, रिपोर्ट के शोधकर्ताओं की संदिग्ध साख है। तीसरा, रिपोर्ट के प्रकाशन का संदिग्ध समय जो वेदांता के प्रस्तावित डीमर्जर के साथ मेल खाता है।

बाजार हेराफेरी का खुलासा

डॉ. चंद्रचूड़ ने वाइसरॉय की कार्यप्रणाली का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, यह एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया है जिसमें पहले लक्षित कंपनी में शॉर्ट पोजीशन ली जाती है, फिर विकृत तथ्यों के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है, और अंत में शेयर की कीमतों में गिरावट से लाभ कमाया जाता है।

विशेष रूप से चिंताजनक यह है कि ऐसी रिपोर्टों में कंपनी से कोई स्वतंत्र सत्यापन नहीं मांगा जाता है। पूर्व सीजेआई ने स्पष्ट किया कि वाइसरॉय भड़काऊ और मानहानिकारक भाषा का उपयोग करता है, जिसका उद्देश्य सनसनी फैलाना는, न कि निष्पक्ष दृष्टिकोण प्रस्तुत करना।

भारतीय कॉर्पोरेट गवर्नेंस की सुरक्षा

डॉ. चंद्रचूड़ ने भारतीय कॉर्पोरेट गवर्नेंस प्रणाली की मजबूती पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया कि भारतीय कंपनियां एक कड़े विनियमित वातावरण में काम करती हैं, जहां नैतिक और जिम्मेदार व्यावसायिक आचरण को बढ़ावा दिया जाता है।

वेदांता के मामले में, कंपनी को आज तक किसी भी नियामक या क्रेडिट रेटिंग एजेंसी से कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं मिला है। जेपी मॉर्गन, बैंक ऑफ अमेरिका जैसी वैश्विक ब्रोकरेज फर्मों ने वेदांता पर अपनी सकारात्मक रेटिंग बनाए रखी है। रेटिंग एजेंसियों क्रिसिल और आईसीआरए ने भी अपनी क्रेडिट रेटिंग की पुष्टि की है।

यह पूरा प्रकरण इस बात को दर्शाता है कि भारतीय न्यायपालिका और नियामक प्रणाली बाजार हेराफेरी के खिलाफ कितनी मजबूत है।

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